शनिवार सुबह सांची में दो दिवसीय महाबोधि महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इस मौके पर श्रीलंका से आए बौद्ध भिक्षु और केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल मौजूद थ। सुबह प्रभात फेरी निकाली गई इसके बाद बौद्ध भिक्षु सारिपुत्र और महामोदग्लायन के अस्थि कलश का पूजन किया गया। दोनों अस्थिकलशों को आम लोगों के दर्शन के लिए रखा गया है।
इस महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1952 में नवंबर के अंतिम रविवार को सांची के बौद्ध स्तूप परिसर स्थित चैत्यगिरि विहार मंदिर के लोकार्पण समारोह के रूप में हुई थी, जिसमें तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू शामिल हुए थे। तभी से हर साल नवंबर के अंतिम रविवार को इस महोत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस महोत्सव में देश के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अलावा बाद के वर्षों में देश की कई शख्सियतें शामिल हो चुकी हैं, जिनमें तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद भी शामिल हैं। पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने भी एक बार इस महोत्सव में आकर अस्थि कलश की पूजा अर्चना की थी। यातायात व्यवस्था को लेकर सांची में दो दिनों तक भारी वाहनों को प्रवेश रोक दिया गया है। वहीं विदिशा और भेापाल के बीच चलने वाले मध्यम भारी वाहन भी मेहगांव होते हुए चलेंगे। वहीं विदिशा रोड पर दो और भोपाल रोड पर तीन वाहन पार्किंग बनाई गईं। वीआईपी के लिए छटवीं पार्किंग विश्राम भवन के परिसर में बनाई गई है।
वियतनाम से आए बौद्ध अनुयायी
चैत्यगिरि विहार मंदिर की विशेष सजावट विदेशी मेहमानों द्वारा की गई है। वियतनाम से बतौर बौद्ध अनुयायी के रूप में महाबोधि महोत्सव में आस्था और भक्ति भाव के साथ शामिल होने के लिए आए हैं। इसके अलावा वियतनाम, सिंगापुर, थालेंड, जापान, श्रीलंका, म्यामार, भूटान, वर्मा सहित कई अन्य देशों से सैकंडों बौद्ध अनुयायी औ पर्यटक शामिल होंगे। इनमें वियतनाम से 150 बौद्ध अनुयायियों सहित, थाइलेंड, सिंगापोर, जापान और श्रीलंका का दल आ चुका है।
सिंगली भाषा में लगाए गए हैं सूचना बोर्ड
पर्यटन विभाग ने सांची में जगह-जगह सूचना पटल श्रीलंकाई भाषा में लगाए जा रहे हैं, जिससे कि सांची बौद्ध स्तूप की जानकारी श्रीलंका के बौद्ध अनुयायियों को मिल सके